श्रीनगर गढ़वाल। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय चौरास परिसर स्थित शैक्षणिक गतिविधि केंद्र में बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) की मूल बातें और संबंधित पहलू विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का विधिवत उद्घाटन 13 नवंबर 2025 को किया गया। यह महत्वपूर्ण शैक्षणिक आयोजन संस्थान नवाचार परिषद (आईआईसी) द्वारा अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ (आरडीसी) तथा प्रौद्योगिकी पूर्व-उद्भवन प्रकोष्ठ (टीपीआईसी) के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। इस कार्यशाला का प्रमुख उद्देश्य शोधार्थियों,नवाचारकर्ताओं और शिक्षकों को बौद्धिक संपदा अधिकारों के महत्व,संरक्षण,प्रक्रिया एवं उसके व्यावहारिक उपयोग से अवगत कराना था। कुलपति प्रो.एस.पी.सिंह ने कार्यशाला के सफल संचालन और सार्थक परिणामों हेतु अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की। आईआईसी के अध्यक्ष प्रो.एन.एम.गोविंदन ने सभी अतिथियों तथा प्रतिभागियों का हार्दिक स्वागत किया। आईआईसी संयोजक डॉ.भास्करन ने कार्यशाला के उद्देश्य,महत्व एवं विश्वविद्यालय में नवाचार संस्कृति के विस्तार पर विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया। आरडीसी के निदेशक प्रोफेसर हेमवती नंदन ने विद्यार्थियों को शोध एवं नवाचार में अग्रसर रहने हेतु प्रेरित किया। इस अवसर पर टीपीआईसी के समन्वयक डॉ.दिगर सिंह और डॉ.रोहित महर भी उपस्थित रहे। कार्यशाला के प्रथम तकनीकी सत्र का शुभारम्भ आईआईटी रुड़की के यांत्रिक अभियंत्रण विभागाध्यक्ष प्रो.अक्षय द्विवेदी के मुख्य व्याख्यान से हुआ। उन्होंने पेटेंट दायर करने की प्रक्रिया,शोध एवं नवाचार की सुरक्षा तथा बौद्धिक संपदा के रणनीतिक प्रबंधन पर व्यापक एवं सरल जानकारी प्रदान की। इसके बाद डॉ.कविता भट्ट दर्शनशास्त्र विभाग ने बौद्धिक संपदा अधिकारों के नैतिक और दार्शनिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। डॉ.आशीष बहुगुणा सहायक प्रोफेसर,कंप्यूटर विज्ञान एवं अभियांत्रिकी ने शैक्षणिक अनुसंधान में बौद्धिक संपदा के दस्तावेजीकरण,संरक्षण और पारदर्शिता के महत्व को रेखांकित किया। दोपहर के सत्र में-डॉ.रवींद्र गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार ने आईपीआर से जुड़ी कानूनी संरचनाओं और नियमों की विस्तृत व्याख्या की। डॉ.लोकेश जोशी ने व्यावहारिक उदाहरणों और वास्तविक मामलों (केस स्टडी) के माध्यम से प्रतिभागियों की समझ को और मजबूत किया। टीपीआईसी समन्वयक डॉ.दिगर सिंह ने प्रतिभागियों को विश्वविद्यालय में संचालित नवाचार-संवर्धन गतिविधियों,तकनीकी सहायता,स्टार्टअप समर्थन तथा उद्भवन-पूर्व तैयारी की विस्तृत जानकारी प्रदान की। सत्र के अंत में प्रतिभागियों की समझ का मूल्यांकन करने हेतु एक ज्ञान परीक्षा (क्विज) का भी आयोजन किया गया,जिसमें शोधार्थियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। यह दो दिवसीय कार्यशाला विश्वविद्यालय में शोध संस्कृति को सुदृढ़ करने,नवाचार को बढ़ावा देने,बौद्धिक संपदा की सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने तथा युवा शोधार्थियों के लिए नवाचारों को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हो रही है।








