श्रीनगर गढ़वाल। राज्य के पर्वतीय कृषकों को आत्मनिर्भर और समृद्ध बनाने के नाम पर चलाई जा रही कृषक कल्याण योजनाएं आज भ्रष्टाचार और दलाली के जाल में उलझती दिख रही हैं। उद्यान एवं कृषि विभाग के कुछ अधिकारियों की कथित मिलीभगत से बीज माफियाओं ने सरकारी योजनाओं में डाका डालने जैसा खेल खेला है। लहसुन,मटर और अदरक जैसे फसलों के बीज वितरण में भारी अनियमितताओं की शिकायतें सामने आ रही हैं-न केवल बीज की गुणवत्ता संदिग्ध बताई जा रही है,बल्कि किसानों से बाजार भाव से दोगुने दाम वसूले जा रहे हैं। जनपद रुद्रप्रयाग के किसान एस.एस.रौथाण ने बताया कि उद्यान विभाग द्वारा इस वर्ष 170 रुपए प्रति किलो की दर से लहसुन बीज बेचा गया,जबकि वही बीज बाजार में 95 रुपए प्रति किलो में उपलब्ध था। इसी प्रकार पौड़ी जनपद के पाबों क्षेत्र के कृषक रविन्द्र रावत ने कहा कि विभाग 175 रुपए प्रति किलो पर लहसुन दे रहा है,जबकि स्थानीय बाजार में वही 80 रुपए प्रति किलो तक बिक रहा है। किसानों का कहना है कि मंडियों से उठाया गया सामान्य लहसुन बीज के नाम पर विभागीय गोदामों में पहुंचाया गया और किसानों पर महंगे दामों में थोप दिया गया। कृषि विशेषज्ञ डॉ.राजेन्द्र कुकसाल ने सवाल उठाया है कि क्या राज्य उद्यान विभाग या स्टेट हॉर्टिकल्चर मिशन (SHM) द्वारा आपूर्ति किया गया यह लहसुन बीज वास्तव में ट्रुथफुली लेबल्ड (TL) श्रेणी का है या नहीं-यह जांच का गंभीर विषय है। उन्होंने कहा कि किसानों को दिए जा रहे बीज की शुद्धता और स्रोत की पारदर्शिता पर ठोस जवाब विभाग को देना होगा। जानकारी के अनुसार लहसुन बोने का उपयुक्त समय निकल जाने के बाद बीज आपूर्ति की जा रही है। कुछ जिलों में तो फर्मों से केवल बिल ही लिए गए हैं,जबकि वास्तविक वितरण किसानों तक नहीं पहुंचा। कई स्थानों पर किसानों के नाम बिना उद्यान कार्ड में अंकित किए वितरण दिखाया गया-जो सीधा-सीधा धोखाधड़ी और वित्तीय अनियमितता का मामला बनता है। सूत्रों के अनुसार जिस फर्म ने वर्ष 2024-25 में बीज आपूर्ति की थी,वही फर्म वर्ष 2025-26 में भी सक्रिय है। पिछले साल बाजार में लहसुन महंगा था,लेकिन इस साल दाम घटने के बावजूद उसी ऊंची दर को लागू रखा गया-यह विभागीय अधिकारियों और आपूर्तिकर्ताओं की मिलीभगत की ओर इशारा करता है। विभाग ने किसानों को 50% अनुदान पर 170 रुपए प्रति किलो की दर से लहसुन दिया,अर्थात् विभागीय खरीद दर लगभग 340 रुपए प्रति किलो बैठती है जो कि बाजार मूल्य से चार गुना अधिक है। मटर और अदरक बीज वितरण में भी यही स्थिति है। पुराने वित्तीय वर्ष की दरें दोबारा लागू कर दी गई हैं,जबकि बाजार दरें आधी रह गई हैं। किसानों का कहना है कि उद्यान विभाग के अधिकारी हर साल एक ही फर्म से टेंडर करा कर करोड़ों रुपये का खेल खेलते हैं। प्रधानमंत्री किसान कल्याण की महत्वाकांक्षी डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) योजना का भी उत्तराखंड में पूर्ण रूप से पालन नहीं किया जा रहा है। उत्तराखंड शासन के पत्रांक संख्या 535/XII-2/2021 दिनांक 17 मई 2021 के अनुसार सभी कृषक योजनाओं का भुगतान डीबीटी के माध्यम से होना चाहिए था,परंतु विभागीय स्तर पर अब भी मैनुअल लेनदेन और टेंडर खरीद का खेल चल रहा है। भारत सरकार की गाइडलाइन स्पष्ट कहती है कि कृषक योजनाओं के अंतर्गत उपयोग किए जाने वाले बीज,फल-पौध या अन्य सामग्री केवल आईसीएआर,कृषि विश्वविद्यालयों या मान्यता प्राप्त अनुसंधान संस्थानों से ही खरीदी जानी चाहिए। लेकिन राज्य में इन नियमों का पालन नहीं हो रहा है। अधिकांश निवेश निम्न-गुणवत्ता वाले सप्लायरों से लिए जा रहे हैं,जिससे किसानों को न केवल आर्थिक नुकसान हो रहा है बल्कि फसल उत्पादन पर भी गंभीर असर पड़ रहा है। किसानों और कृषि विशेषज्ञों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कर दोषी अधिकारियों और बीज आपूर्तिकर्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि अगर सरकार वास्तव में कृषक कल्याण के प्रति गंभीर है,तो उसे पहले विभागीय भ्रष्टाचार को रोकना होगा। डॉ.कुकसाल ने कहा जब तक योजनाएं पारदर्शी नहीं होंगी,तब तक किसान आत्मनिर्भर नहीं बल्कि ठगा जाता रहेगा। सरकार को चाहिए कि डीबीटी व्यवस्था को सख्ती से लागू करे और बीज आपूर्ति की निगरानी विश्वविद्यालय या शोध संस्थानों से कराए।








