श्रीनगर गढ़वाल। ऐतिहासिक बैकुंठ चतुर्दशी मेला इस बार एक बार फिर अपने सांस्कृतिक चरम पर पहुंचा,जब दूसरी संध्या में उत्तराखंड की सुप्रसिद्ध लोकगायिका हेमा नेगी करासी ने मंच संभाला। जैसे ही करासी ने अपनी मधुर आवाज से पहला सुर छेड़ा,पूरा पंडाल तालियों की गूंज और उल्लास से भर उठा। दर्शकों की भीड़ देर रात तक उनके गीतों की लय में झूमती रही। कार्यक्रम का शुभारंभ देवी नंदा पर आधारित पारंपरिक जागर गीत से हुआ,जिसने पूरे वातावरण को भक्ति और लोक-संस्कृति के भावों से ओतप्रोत कर दिया। इसके बाद करासी ने जब आंछरी और नृसिंह जागर जैसी रचनाएं प्रस्तुत की,तो हर श्रोता मानो देवभूमि की आध्यात्मिक अनुभूति में डूब गया। लोकसंगीत की इस यात्रा में उन्होंने अमरा बांध,जाग नंदा,गिरातोली गिर गेंदुआ और मेरी बामणी जैसे लोकप्रिय गीतों से ऐसा समां बांधा कि दर्शक खुद को थिरकने से नहीं रोक पाए। हर गीत के साथ तालियों और जयकारों की गूंज बढ़ती गई,और मंच मानो लोक-संस्कृति के पर्व का प्रतीक बन गया। हेमा नेगी करासी की गायकी ने गढ़वाल की देवी परंपरा,सांस्कृतिक धरोहर और लोकजीवन की आत्मा को सजीव कर दिया। उनके गीतों में जहां लोक-विश्वास की गहराई थी,वहीं आधुनिकता से तालमेल बिठाने की सहज लय भी महसूस हुई। इस अवसर पर नगर निगम श्रीनगर की मेयर आरती भण्डारी ने मेले की सफलता के लिए नगरवासियों और आयोजन टीम का आभार जताया। उन्होंने कहा कि बैकुंठ चतुर्दशी मेला केवल एक आयोजन नहीं,बल्कि श्रीनगर की आत्मा है। हमारी पूरी कोशिश है कि आने वाले दिनों में इस मेले को और भव्य रूप दिया जाए। कार्यक्रम के संचालन और समन्वय में कार्यक्रम प्रभारी रमेश रमोला,नरेंद्र रावत,राजकुमार सहित निगम के समस्त पार्षदों ने सक्रिय भूमिका निभाई। शाम होते-होते जब करासी आवाज की गूंज से संपूर्ण श्रीनगर की घाटियां लोकसंगीत की धुनों में गूंज उठी हों।








