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उच्च न्यायालय नैनीताल में समान नागरिक संहिता के नियमों को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई, केन्द्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी, 42 दिनों में जवाब दाखिल करने के आदेश

gvartanews by gvartanews
February 13, 2025
Reading Time: 1 min read
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उत्तराखंड – (एम सलीम खान ब्यूरो) नैनीताल उच्च न्यायालय में लागू की गई समान नागरिक संहिता U C C के नियमों को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर केन्द्र और राज्य को हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर दिया है और इस नोटिस के संबंध में दोनों सरकारों को 42 दिनों में अपना जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं हाईकोर्ट ने जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सरकार की तरह से वर्चुअल के जरिए हाजिर हुए केंद्र सरकार के सालिसिटर जनरल तुषार मेनता ने इन जनहित याचिकाओं को निर्रथक क़रार देते हुए दलील दी कि सरकार ने नैतिक के मुताबिक यह कानून बनाया है और लागू किया है विधायिका को कानूनी बनाने के अधिकार है उन्होंने दलील दी कि लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन से महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में बड़े स्तर पर कमी आएगी हाईकोर्ट ने इस मामले की अग्रिम सुनवाई छह सप्ताह के किए जाने की तारीख मुकर्रर कर दी है, बीते बुधवार को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति जी नरेन्द्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ में देहरादून के डालनवाला कॉलोनी के रहने वाले अल्मशुद्दीन सिद्दीकी और जनपद हरिद्वार की रहने वाली इकरा व नैनीताल के भीमताल के रहने वाले सुरेश सिंह नेगी द्वारा अलग-अलग दायर की जनहित याचिकाओं पर एक साथ हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए इस मामले केन्द्र और राज्य सरकार से 42 दिनों में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं,इन जनहित याचिकाओं में मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विवाह,तलाक और इद्दत और उनकी परम्परागत विरासतों के बारे में समान नागरिक संहिता 2024 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता हरि प्रसाद गुप्ता ने अदालत के सामने दलील पेश करते हुए कहा कि कुरान और उसकी सूरतो (आयतों) में निर्धारित नियम मुस्लिम शरियत हर मुसलमान के लिए एक आवश्यक धार्मिक चलन (प्रथा) है, यूसीसी धार्मिक मामलों के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है जो कुरान शरीफ की सूरतों (आयतों) के विपरित है यूसीसी भारतीय संविधान के अनुच्छेद -25 का घौर उल्लंघन करता है जिसमें धर्म के पालन और उसके मानने की आजादी की गारंटी मिली है यूसीसी की धारा 390 में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के विवाह तलाक और विरासत के संबंध में रीति-रिवाजों और प्रथाओं को निरस्त करतीं हैं, और दलील दी कि कुरान की आयतों के विपरित सिविल कानून मान्य नहीं है कलमें मजीद की सूरतों का पालन एक मुस्लिम के लिए बेहद जरूरी है और सिविल कानून बनाकर राज्य सरकार किसी मुसलमान शख्स को ऐसा कुछ नहीं करने का निर्देश नहीं दे सकता जो कलमें मजीद की सूरतों आयतों के विपरित हो, दलील में उदाहरण दिया गया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला के लिए उसके शौहर की मृत्यु के बाद इद्दत के समय की अवधि अनिवार्य है लेकिन समान नागरिक संहिता में इस शरियत कानून को समाप्त कर मुसलामानों के धार्मिक अभ्यास का उल्लघंन किया गया है, अधिवक्ता ने अदालत में दलील दी कि यूसीसी संविधान के अनुच्छेद 245 का भी उल्लंघन करता है इसलिए ऐसा कहा गया कि क्योंकि यह एक राज्य कानून हैं जिसका क्षेत्रीय अधिकार है, याचिकाओं में लव इन रिलेशनशिप के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन और इसके अभाव में दंडित करने की सजा को चुनौती दी गई है यह केन्द्र सरकार के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मिले निजात के अधिकारों का उल्लघंन है दलील में कहा गया कि यूसीसी संविधान की मर्यादा का भी उल्लंघन करता है क्योंकि प्रस्तावना आस्था अभिव्यक्ति भरोसा और स्वतंत्रता की गारंटी देती है अदालत से कहा गया कि लिव इन रिलेशनशिप का प्राविधान असंवैधानिक जनहित याचिका में मुस्लिम के साथ ही पारसी समुदाय की वैवाहिक पद्धति की समान नागरिक संहिता में अनदेखी किए जाने सहित अन्य प्रावधानों को भी चुनौती दी है, याचिका में लव इन रिलेशनशिप को असंवैधानिक करार दिया है, अदालत से कहा गया कि जहां सामान्य विवाह के लिए वर (लड़के) की आयु 21 साल और वधू (लड़की) की आयु 18 साल होनी आवश्यक है जबकि लव इन रिलेशनशिप में दोनों की आयु (लड़का/लड़की) आयु 18 साल निर्धारित की गई है, और उनसे होनी वाली सन्तानों कानूनी बच्चे कहें या वैध माने जाएंगे अगर कोई व्यक्ति अपनी लव इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है वह एक साधारण से आवेदन पत्र (प्रार्थना पत्र) रजिस्टर को देकर लगभग 15 दिनों के अंदर अपनी पत्नी (पार्टनर) को छोड़ देगा जबकि विवाह तलाक लेने के लिए उसे पूरी न्यायिक प्रक्रिया को अपनाना होता है लंबे अरसे के बाद तलाक होती है और उसे अपने पार्टनर को भरण पोषण देना होता है, राज्य में नागरिकों को जो अधिकार संविधान से हासिल है राज्य सरकार ने उसमें दखल अंदाजी करके उनका हनन किया है, दलील दी गई कि समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद लोगों विवाह न करके लिव इन रिलेशनशिप में ही जीवन पसंद करेंगे जब तक पार्टनर के संबंध सही अच्छे होंगे तब तक ही रहेंगे और जब संबंध विवाद में आ जाएंगे तो छोड़ देंगे,साल 2010 के उपरांत इसका रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है न करने पर तीन महीने की सजा या 10 हजार रुपए का जुर्माना देना होगा इससे तो लव इन रिलेशनशिप एक तरीके का वैध ही है, कानूनी प्रावधान को अपनाने में अंतर है,समान नागरिक संहिता करता है इस्लामिक रीती रिवाजों को प्रतिबंधित इन याचिकाओं मे एक ओर बात को पूरे जोर देते हुए कहा कि राज्य सरकार ने समान नागरिक संहिता अधिनियम को लागू करने में इस्लामिकी रीती रिवाजों और कलमें मजीद व उससे संबंधित अन्य प्रविधियों की अनदेखी की है शौहर की मौत के उसकी पत्नी 40 दिनों तक प्रार्थना करती है जो कलमें मजीद में कहा गया है कलमें मजीद के मुताबिक पति की मौत के बाद उसकी पत्नी अपने शौहर की आत्मा की शांति के लिए 40 दिनों तक ईश्वर (अल्लाह) से एकांत में प्रार्थना करती है और समान नागरिक संहिता में इसे प्रतिबंधित करता है शरीयत कानून के मुताबिक संगे संबंधी को छोड़कर अन्य से दूसरा निकाह करने का शरीयती कानून का प्राविधान है लेकिन समान नागरिक संहिता इसकी इजाजत नहीं दी गई है अधिवक्ता ने आगे दलील दी कि शरीयत के मुताबिक संपत्ति के मामलों में पिता अपनी सम्पति का सभी पुत्रों को बांटकर उसका एक भाग (हिस्सा) अपने पास रखकर जब उसकी इच्छा हो दान दे सकता है और समान नागरिक संहिता उसकी भी इज्जत नहीं दी गई है,समान नागरिक संहिता के मुख्य प्रविधान शादी का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी पर प्रतिबंधित सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का सम्मान अधिकार मुस्लिम समुदाय में हलाला और इद्दत की प्रथा पर रोक समप्ति के अधिकारों में जायज नाजायज बच्चों में भेद नहीं आदि में संशोधन किया जाए इस मामले में उच्च न्यायालय नैनीताल ने केंद्र और राज्य सरकार को 42 दिनों में अपना जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं और इस मामले की अगली सुनवाई अब 42 दिनों मसलन 6 हफ्ते बाद हाईकोर्ट करेगा।

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