गढ़वाल। जब अलकनंदा की लहरों पर दीपों की परछाईं झिलमिलाने लगी,मंदिरों की घंटियां गूंजने लगीं और लोकगीतों की स्वर लहरियां हवा में घुलने लगीं-तब देवभूमि श्रीनगर का आकाश आस्था और संस्कृति के दिव्य आलोक से भर उठा। ऐतिहासिक बैकुंठ चतुर्दशी मेले की पहली संध्या इस वर्ष एक नई छटा में निखर उठी,जब पूरे शहर ने भक्ति,परंपरा और संगीत का अद्भुत संगम देखा। मुख्य मंच पर जब पद्मश्री लोकगायक प्रीतम भरतवाण ने अपने सुरों से देवताओं का आह्वान किया-शिवजी कैलाशु रैंदा और हे देवता म्यरु बगड़ बासु की धुनों पर पूरा पंडाल झूम उठा। कहा जा सकता है,यह केवल एक प्रस्तुति नहीं थी-यह देवभूमि की आत्मा का सजीव संवाद था। भरतवाण के गीतों में जब नंदा देवी,गौरजा और बांखली बग्वाल के लोकसुर बहे,तो श्रोताओं की आंखों में आस्था की चमक और गर्व की नमी दोनों दिखाई दी। उन्होंने लागी लागी बाण बर्फूली और छेली आ बिंदुली जैसे लोकप्रिय गीतों से ऐसा समां बांधा कि तालियों की गूंज देर रात तक थमती नहीं दिखी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.आशुतोष सयाना प्राचार्य मेडिकल कॉलेज श्रीनगर ने कहा कि बैकुंठ चतुर्दशी मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं,बल्कि लोकसंस्कृति,कला और एकता का जीवंत प्रतीक है। यह हमारी जड़ों से जुड़े रहने का उत्सव है,जो नई पीढ़ी को अपनी परंपराओं से परिचित कराता है। मेयर आरती भण्डारी ने कहा यह मेला श्रीनगर की सांझी विरासत है। इसे सहेजना और संवारना हमारी जिम्मेदारी है। ऐसे आयोजन हमें एक सूत्र में बांधते हैं और समाज में सांस्कृतिक चेतना का संचार करते हैं। उन्होंने मेला आयोजन समिति और कलाकारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि नगर निगम इस विरासत को और भव्य स्वरूप देने के लिए प्रतिबद्ध है। कार्यक्रम में नगर आयुक्त नूपुर वर्मा,सामाजिक कार्यकर्ता लखपत सिंह भण्डारी,कार्यक्रम प्रभारी पार्षद विजय चमोली,वार्ड पार्षद सूरज नेगी,निगम के पार्षदगण व बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक मौजूद रहे। मेले में दीपों की लौ,ढोल-दमाऊं की थाप और लोकगायन की मधुरता ने ऐसा वातावरण रचा कि देवभूमि का हर कण भक्ति में डूबा प्रतीत हुआ। बैकुंठ चतुर्दशी मेला श्रीनगर की आत्मा का उत्सव है-जहां लोकसंगीत केवल सुना नहीं जाता,जिया जाता है। जब भरतवाण जैसे लोकनायक गाते हैं,तो लगता है देवता स्वयं उतर आए हों और आस्था की धुनों में समा गए हों। पद्मश्री प्रीतम भरतवाण के गीतों ने पंडाल को भक्तिरस में डुबोया। डॉ.आशुतोष सयाना और मेयर आरती भण्डारी के प्रेरक संबोधन। नगर निगम और स्थानीय नागरिकों की सक्रिय भागीदारी। आस्था,संस्कृति और लोककला का भव्य संगम बना बैकुंठ चतुर्दशी मेला। पद्मश्री प्रीतम भरतवाण के भक्ति गीतों से गूंज उठा श्रीनगर बैकुंठ चतुर्दशी मेले की पहली संध्या बनी अविस्मरणीय। आस्था,लोकसंगीत और दीपों की छटा ने रच दिया देवभूमि का अनुपम दृश्य।








