श्रीनगर गढ़वाल। जनपद पौड़ी गढ़वाल के विकासखंड खिर्सू के भैसकोट में धूप-छांव से नहाए पहाड़,सांझ की सुनहरी लाली और ढोल-दमाऊं की रहस्यपूर्ण थापें 5 दिसम्बर को भैसकोट पांडव नृत्य गैण्डी महोत्सव 2025 के अंतर्गत आयोजित देवी प्रज्वलन एवं पांडव नृत्य कार्यक्रम ने समूचे गांव और पूरे क्षेत्र में उत्सव का रंग घोल दिया। स्थानीय ग्रामीणों और श्रद्धालुओं की भारी उपस्थिति में आयोजित युवा पारंपरिक आयोजन संस्कृति,आस्था और लोकनृत्य का मनभावन संगम बन गया और एक पवित्र आध्यात्मिक आभा से भर दिया। संस्कृति,लोककला और आस्था का ऐसा अनूठा संगम कम ही देखने को मिलता है। सांझ ढलते ही महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में मंगल गीत गाए और देवी प्रज्वलन की प्राचीन परंपरा को जीवंत किया। दीपों की लौ जब हवा में थिरकी तो लगा मानो सम्पूर्ण गांव देवी शक्ति के दिव्य स्पंदन से अधिष्ठित हो उठ गया हो। इस पावन क्षण ने कार्यक्रम को ऐसी ऊंचाई दी कि दर्शक भी भक्ति के भाव में डूबते चले गए। पांडव नृत्य ने मोह लिया दर्शकों का मन-गाथाओं की सजीव प्रस्तुति। देवी पूजन के बाद मंच सजा पौराणिक गाथाओं का पांडव नृत्य जब भीष्म पितामह की बाण शैया,अभिमन्यु के शौर्य,हनुमान के पराक्रम और नारायण भगवान के दिव्य स्वरूप जैसे प्रसंगों को जीवंत किया,तो दर्शक भाव-विभोर हो उठे। कलाकारों का अभिनय,अंग-संचालन,वेशभूषा और संगीत का समन्वय इतना सशक्त था कि कई क्षणों में लगा मानो महाभारत की कथा साक्षात मंच पर उतर आई हो। द्रौपदी छांदण-दर्द,शक्ति और गरिमा का अद्वितीय संगम,संध्या का सबसे संवेदनशील,हृदय को भेदने वाला क्षण रहा द्रौपदी छांदण। कलाकार ने द्रौपदी के अपार धैर्य,अपमान और फिर देवी कृपा से प्राप्त गौरव को जिस तरह प्रस्तुत किया,उससे वातावरण कुछ पल के लिए स्तब्ध हो गया। दर्शकों के चेहरों पर गहन भाव दिखाई दिए-यह प्रस्तुति कला नहीं,एक अनुभूति बनकर सामने आई। कार्यक्रम के अंत में पांडवों का ग्रामीणों से स्नेहिल मिलन दर्शनीय था। बच्चे उमंग से भरकर पांडवों के चरणों से आशीष लेते दिखे,वहीं बुजुर्गों ने आशीर्वाद देते हुए इस परंपरा को संस्कृति का जीवंत धन बताया। इस पूर्ण आयोजन में गांव का हर घर,हर परिवार और हर बुजुर्ग जैसे सहभागी बन गया। ढोल की थाप,किणकिणाती च्यंग और पांडव नृत्य के घुमक न सिर्फ माहौल को ऊर्जा से भरते रहे,बल्कि पहाड़ की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को पुनः उजागर करने का श्रेष्ठ संदेश भी देते रहे। नई पीढ़ी में संस्कार,पुरानी पीढ़ी में गर्व का संचार,यह आयोजन सिर्फ मनोरंजन का नहीं बल्कि संस्कृति के संरक्षण और पीढ़ियों को जोड़ने का जीवंत मंच बना। बच्चों ने अपनी संस्कृति को बहुत करीब से देखा,बुजुर्गों ने अपने समय की परंपराओं को फिर से जी लिया। भैसकोट गांव में आयोजित यह दिव्य रात्रि पर्व क्षेत्रवासियों की स्मृतियों में हमेशा ताजी बनी रहेगी। यह सिर्फ पांडव नृत्य नहीं था-यह गढ़वाली संस्कृति की आत्मा का उत्सव था,पर्वत के लोगों की एकता का प्रत्यक्ष प्रमाण था और परंपराओं की अग्नि को सहेजने का संकल्प था।






