पौड़ी/श्रीनगर गढ़वाल। पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार बढ़ रहे आदमखोर जंगली जानवरों के हमलों ने आम जनजीवन को संकट में डाल दिया है। गुलदार और भालू जैसे वन्यजीवों का आतंक इस कदर बढ़ चुका है कि ग्रामीणों का घर से निकलना भी मुश्किल हो गया है। महिलाओं,बच्चों और बुजुर्गों के साथ अब पुरुष भी इन हमलों का शिकार बनने लगे हैं। हालात इतने भयावह हैं कि गांव-गांव,पगडंडी-पगडंडी में खौफ का माहौल है और स्थानीय जनता हर पल डर के साए में जीने को मजबूर है। इसी मुद्दे को लेकर पौड़ी बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक नमन चंदोला ने शुक्रवार को प्रेस नोट जारी कर सरकार और वन विभाग पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि जंगली जानवरों की बढ़ती संख्या और नियंत्रणहीन गतिविधियां अब मानव जीवन पर गहरा संकट बनकर सामने आ रही हैं। पर्वतीय जिलों में हर दूसरा दिन किसी न किसी हमले या दहशत की खबर के नाम हो चुका है। नमन चंदोला ने आरोप लगाया कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम का मौजूदा ढांचा कई ऐसे जानवरों को भी अनियंत्रित संरक्षण प्रदान कर रहा है,जिनसे मानव जीवन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा अब हालात इतने चिंताजनक हैं कि हर एक किलोमीटर के दायरे में एक गुलदार दिखाई देना आम बात हो गई है। यह स्थिति पहाड़ों के लिए आपदा से कम नहीं। उन्होंने कहा कि सरकार को स्पष्ट करना होगा कि उनके लिए मानव जीवन की सुरक्षा प्राथमिकता है या पहाड़ों को पूरी तरह जंगली जानवरों के हवाले करना। नमन ने सरकार से मांग की कि तत्काल-गुलदार,भालू और बाघ जैसे हिंसक जानवरों की जनसंख्या पर नियंत्रण लगाया जाए,इनके लिए निर्धारित क्षेत्रों का चयन किया जाए,घनी आबादी वाले क्षेत्रों से इन्हें अन्यत्र भेजने की ठोस कार्ययोजना तैयार की जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो हालात और बिगड़ेंगे और जनता का गुस्सा सरकार के खिलाफ ज्वालामुखी बनकर फूट सकता है। नमन ने कहा पर्यावरणीय संतुलन के लिए हर जीव महत्वपूर्ण है,लेकिन जब मानव जाति ही संकट में आ जाए तो आदमखोरों के खिलाफ कठोर कदम उठाना ही आखिरी विकल्प बच जाता है। इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री से तत्काल हस्तक्षेप की अपील करते हुए कहा कि पहाड़ों में रहने वाली जनता के लिए सुरक्षित वातावरण और जीवन रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अंत में नमन भैय्या ने प्रेस नोट के माध्यम से चेतावनी दी-अगर हालातों पर जल्द नियंत्रण नहीं किया गया तो इसकी राजनीतिक और सामाजिक कीमत सरकार को चुकानी पड़ेगी। पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार बढ़ रहे इस आतंक ने अब एक गंभीर जनमुद्दा का रूप ले लिया है,जिस पर सरकार को जल्द से जल्द निर्णायक कार्रवाई करनी ही होगी।








