श्रीनगर गढ़वाल। जनपद पौड़ी गढ़वाल के विकास खण्ड खिर्सू के सांस्कृतिक धरोहरों में शुमार ग्राम भैसकोट एक बार फिर अपने पारंपरिक रंगों में रंगने को तैयार है। पूर्वजों की परंपराओं को जीवंत रखने वाले पांडव नृत्य (गैण्डी) का 50 वां गोल्डन जुबली महोत्सव इस वर्ष 2 दिसंबर से 6 दिसंबर 2025 तक बड़े धूमधाम से आयोजित किया जा रहा है। आधी सदी का यह गौरव पर्व न केवल गांव की समृद्ध लोक-संस्कृति का प्रतीक है बल्कि पलायन की मार झेल चुके ग्रामीण अंचलों को फिर से जोड़ने का अद्भुत अवसर भी बनेगा। ग्रामीणों की भावनाओं से जुड़ा पांच दिवसीय उत्सव-हर साल की भांति इस वर्ष भी गांव के लोग उत्साह और आस्था के साथ आयोजन को भव्य बनाने में जुटे हैं। सबसे खास बात यह है कि गांव से बाहर रह रहे सभी प्रवासी भैसकोटवासी इस अवसर पर अपने घर लौटेंगे। इसके साथ ही गांव की विवाहित महिलाओं (ध्याणियों) को विशेष रूप से निमंत्रण भेजा गया है,जो इस सांस्कृतिक पर्व को और अधिक आत्मिक व पारिवारिक बनाएगा। पांडव नृत्य केवल एक मंचीय प्रस्तुतिकरण नहीं बल्कि देव-आस्था,परंपरा,सामूहिकता और लोकसंस्कृति का प्रतीक माना जाता है। महोत्सव के दौरान भैसकोट गांव और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में अद्भुत उल्लास तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार रहेगा। गोल्डन जुबली में होगी परंपरा और भव्यता का संगम,पचास वर्षों की सांस्कृतिक यात्रा को यादगार बनाने के लिए आयोजन समिति इस वर्ष कार्यक्रम को खास रूप देने जा रही है। ग्रामीणों के अनुसार मंच सज्जा,पारंपरिक परिधान,देव-कथाएं,ढोल-दमाऊं की थाप और रात्रिकालीन लोक-नृत्य प्रदर्शन गोल्डन जुबली की गरिमा को और ऊंचा उठाएंगे। इस ऐतिहासिक आयोजन को भव्य स्वरूप देने के लिए ग्रामीणों की सामूहिक भूमिका अहम है और ग्राम सभा प्रधान सुनीता देवी,अध्यक्ष महिला मंगल दल देवेश्वरी देवी,अध्यक्ष नवयुवक मंगल दल सत्यपाल सिंह,सरपंच जयकृत सिंह नयाल,सदस्य-अनिल नयाल,देवेंद्र भंडारी,उमेश नयाल सहित अन्य ग्रामवासी पूरे मनोयोग से आयोजन की व्यवस्थाओं में जुटे हैं। सभी ग्रामवासियों के संयुक्त प्रयासों से 50 वीं गोल्डन जुबली पांडव नृत्य महोत्सव केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं,बल्कि गांव की पहचान,एकता और परंपरागत गौरव का उत्सव बनकर उभर रहा है। जहां एक ओर पहाड़ी गांवों में पलायन का असर दिखाई देता है,वहीं भैसकोट जैसे गांव अपनी संस्कृति के संरक्षण-संवर्द्धन से न केवल युवाओं को जोड़ रहे हैं,बल्कि अपनी जड़ों से पुनः संबंध स्थापित कर रहे हैं। यह गोल्डन जुबली महोत्सव आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत साबित होगा। इस बार भैसकोट में केवल नृत्य नहीं होगा-बल्कि लौटेगा अपना पहाड़,जीवट,संस्कृति और सामूहिकता का स्वर्णिम स्वरूप।








