कुलाधिपति श्री सुरेश जैन बोले, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के संग्रह में अब तक हस्तलिखित ग्रंथ नहीं थे, लेकिन कुंदरकी जैन चैत्यालय की ओर से दिए गए इस दान के जरिए पहली बार यह ऐतिहासिक उपलब्धि हुई संभव, उम्मीद जताई, ये पांडुलिपियां जैन दर्शन, इतिहास, भाषा और संस्कृति से जुड़े गहन शोध एवम् अध्ययन के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगी
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद को सैकड़ों वर्ष प्राचीन दुर्लभ जैन ग्रंथों की अनमोल सौगात मिली है। जैन साहित्य के इस दुर्लभ संग्रह में डुण्डारी भाषा की हस्तलिखित पांडुलिपियां भी शामिल हैं। ये पांडुलिपियां सैकड़ों वर्ष पुरानी होने के कारण ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। टीएमयू के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन कहते हैं, यूनिवर्सिटी के संग्रह में अब तक हस्तलिखित ग्रंथ नहीं थे, लेकिन इस दान के जरिए पहली बार यह ऐतिहासिक उपलब्धि संभव हुई है। ये पांडुलिपियां जैन दर्शन, इतिहास, भाषा और संस्कृति से जुड़े गहन शोध एवम् अध्ययन के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगी। इस अवसर पर फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, ग्रुप वाइस चेयरमैन श्री मनीष जैन, श्रीमती ऋचा जैन, श्रीमती जान्हवी जैन ने कहा, यह जैन साहित्य टीएमयू की संस्कार आधारित शिक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन कहते हैं, लाइब्रेरी को भेंट में मिले इन दुर्लभ जैन ग्रंथों के अध्ययन से स्टुडेंट्स को जैन धर्म के वास्तविक मूल एवम् जीवन दर्शन सीखने का सौभाग्य मिलेगा।
उल्लेखनीय है, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के नॉलेज रिसोर्स सेंटर में वर्तमान में 3 लाख 14 हजार से अधिक पुस्तकों का समृद्ध संग्रह उपलब्ध है। कुलपति प्रो. वीके जैन ने कहा कि आज के नवाचार, विज्ञान और तकनीकी युग में भी पारंपरिक ज्ञान की महत्ता कभी कम नहीं होती है। उन्होंने कहा कि आधुनिकता और परंपरा के समन्वय से ही संतुलित, संवेदनशील और पूर्ण विकास संभव है। टीएमयू इसी सोच के साथ सतत प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है। प्रो. जैन ने कहा कि यह दान जैन अध्ययन और भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण एवम् संवर्द्धन के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है। प्रो. जैन ने घोषणा की, शीघ्र ही इन दुर्लभ ग्रंथों के डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया आरंभ होगी, जिससे इन ऐतिहासिक धरोहरों का सुरक्षित संरक्षण और वैश्विक स्तर पर शोधार्थियों तक उनकी सहज पहुंच सुनिश्चित की जा सके। मंगलाचरण डॉ. करुणा जैन और डॉ. अर्चना जैन ने प्रस्तुत किया। संचालन डॉ. कल्पना जैन ने किया। यूनिवर्सिटी की चीफ लाइब्रेरियन डॉ. विनीता जैन ने बताया कि यूनिवर्सिटी को जैन साहित्य की ये अनमोल देन कुंदरकी के जैन चैत्यालय की ओर से श्री समीर जैन, श्री चतुर बिहारी लाल जैन, श्री प्रमोद बिहारी लाल जैन, श्री कुलवंत राय जैन और संपूर्ण सोनी परिवार से प्राप्त हुई है।








