देवप्रयाग/श्रीनगर गढ़वाल। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर जहां प्रदेशभर में विकास और उत्सव की गूंज रही,वहीं देवभूमि की पावन धरती देवप्रयाग में यह दिवस संवेदना,करुणा और सेवा के प्रतीक आयोजन के रूप में मनाया गया। पशुपालन विभाग देवप्रयाग की ओर से अरण्यक जन सेवा संस्था द्वारा संचालित गौशाला,बागी में विशेष कार्यक्रम आयोजित कर निराश्रित और घायल गौवंशों को फल,गुड़ और हरा चारा खिलाकर राज्य स्थापना दिवस का उत्सव मनाया गया। इस दौरान विभागीय टीम ने गौशाला में रह रहे दुर्घटनाग्रस्त और बीमार गौवंशों का उपचार किया तथा गौसेवकों को उनके पालन-पोषण और चिकित्सा संबंधी जानकारी भी दी। गौशाला परिसर में भक्ति,स्नेह और सेवा का ऐसा वातावरण बना कि उपस्थित हर व्यक्ति के मन में गौमाता के प्रति श्रद्धा और करुणा का भाव जाग उठा। इस अवसर पर पशुपालन विभाग देवप्रयाग के चिकित्सक डॉ.मनीष ठाकुरी,एलईओ देवेंद्र दत्त नौटियाल,आशीष कुमार,गौशाला प्रबंधक इन्द्र दत्त रतूड़ी,अनिल गिरी,गब्बर सिंह आदि उपस्थित रहे। डॉ.मनीष ठाकुरी ने कहा कि राज्य स्थापना दिवस केवल प्रशासनिक पर्व नहीं,बल्कि यह हमें अपनी जड़ों और जिम्मेदारियों की याद दिलाने का अवसर भी देता है। पशुधन की सेवा ही ग्रामीण समृद्धि की नींव है। गौशाला प्रबंधक इन्द्र दत्त रतूड़ी ने कहा कि हमारे लिए हर गौमाता परिवार का हिस्सा है। जब कोई निराश्रित या घायल गौवंश हमारे पास आता है, तो उसे स्वस्थ देखना ही हमारी सबसे बड़ी खुशी होती है। राज्य स्थापना दिवस पर पशुपालन विभाग का यह सहयोग हमारे लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने कहा कि संस्था निरंतर गौसेवा के लिए प्रतिबद्ध है और स्थानीय समाज को भी इसमें आगे आने की अपील की। गौसेवा केवल धार्मिक आस्था नहीं,बल्कि पर्यावरण,करुणा और जीवन के संतुलन का प्रतीक है,उन्होंने जोड़ा। कार्यक्रम में विभागीय टीम ने गौशाला कर्मचारियों को गौवंश के पोषण,टीकाकरण,रोग-निवारण और देखभाल की तकनीकी जानकारी दी। साथ ही यह भी बताया कि राज्य सरकार निराश्रित पशुओं की देखभाल हेतु अनेक योजनाएं संचालित कर रही है,जिनमें जनसहभागिता को प्राथमिकता दी जा रही है। कार्यक्रम के दौरान उपस्थित नागरिकों ने भी गौमाता को फल-गुड़ खिलाकर अपना योगदान दिया। वातावरण में मंत्रोच्चार और घंटियों की मधुर ध्वनि गूंजती रही-मानो देवभूमि का हर कण गौसेवा ही सच्ची लोकसेवा का संदेश दे रहा हो। राज्य स्थापना दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि उत्तराखंड की आत्मा केवल पहाड़ों और नदियों में नहीं,बल्कि हमारे पशुधन में भी बसती है। जब देवभूमि के लोग अपने निराश्रित पशुओं के प्रति संवेदनशील होते हैं,तब वही सच्चा विकास होता है जहां सेवा में ही उत्सव का भाव हो।








